भारत- नेपाल नदी जल विवाद

            भारत-नेपाल नदी जल विवाद
भारत एवं नेपाल में फरवरी 1996 में महाकाल संधि पर हस्ताक्षर किया गया था| पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना का क्रियान्वयन इस संधि का मूल भाव है इस संधि के तहत महाकाली नदी के समन्वित विकास की योजना है जिसमें शारदा बैराज टनकपुर बैराज एवं पंचेश्वर डैम परियोजना शामिल है परियोजना के क्रियान्वयन हेतु पंचेश्वर विकास प्राधिकरण की स्थापना के लिए एक ड्राफ्ट वर्ष 2009 में जारी किया गया पंचेश्वर बांध महाकाली नदी पर प्रस्तावित है भारत में महाकाली नदी को शारदा नदी भी कहते हैं यह बांध उस जगह पर स्थापित है जहां यह नदी नेपाल के सुदूर पश्चिमी विकास क्षेत्र एवं उत्तराखंड में अंतरराष्ट्रीय सीमा बनाते हैं फिलहाल यह परियोजना आरंभ नहीं हो सकी है|

 महाकाली के  अलावा कोसी नदी नारायणी नदी बागमती नदी के पानी को लेकर भी विवाद है इस नदियों के बाढ़ से बिहार अत्यधिक प्रभावित होता है वर्ष  1954 मैं कोसी बैराज समझौता तथा 1959 में गड़क बैराज समझौता को नेपाल के लोग भेदभाव वाला मानते हैं उनके मुताबिक इन समझौतों में नेपाल के हितों को नुकसान पहुंचाया गया है और उसे कम पानी प्राप्त हुआ है इस वजह से इन नदियों के बाढ़ प्रबंधन पर बात आगे नहीं बढ़ सकी है अभी भी उत्तर बिहार की बड़ी आबादी नेपाल से निकलने वाली इन नदियों के बाढ़ से प्रतिवर्ष पीड़ित होती है वर्ष 2008 में भारत-नेपाल सीमा पर कोसी नदी पर बने बांध के टूटने तथा इसके नया मार्ग बना लेने से 23 लाख प्रभावित हुए हैं तथा तीन लाख घर 800000 एकड़ की फसल नष्ट हो गई थी ऐसा कहा जाता है कि वर्ष 1954 में कोशी समझौता के हस्ताक्षर के बाद से दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर वार्ता में विराम लग गई और जल अधिकार मुद्दे का समाधान नहीं निकल पाया इस चक्कर में प्रथम बांध उपेक्षित रह गया तथा प्रस्तावित दूसरा बांध नहीं बन पाया भारत अपनी बढ़ती ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए नेपाल में जल विद्युत परियोजनाएं भी बनाना चाहती है परंतु भारत के प्रति संदेश के वातावरण से यह परियोजनाएं आगे नहीं बढ़ पाई है यह भी सत्य है कि गरीब देश नेपाल के पास संसाधन और  प्रौद्योगिकियों का अभाव है और वह खुद से बांध हुआ जल विद्युत परियोजनाओं को पूरा करने में अक्षम है भारत इस कमी को दूर करने को इच्छुक है परंतु ऐतिहासिक घटनाक्रम और भारत विरोध की वजह से यह संभव नहीं हो पा रहा है यही वजह है कि अब नेपाल चीन की ओर रुख कर रहा है और चीन भी नेपाल में धन व प्रौद्योगिकी निवेश के लिए तत्पर है

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