मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख केंद्र-Major centers of national movement in Madhya Pradesh

मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख केंद्र

जबलपुर-                                                                                                                                      स्वाधीनता आंदोलन में जबलपुर का योगदान महत्वपूर्ण रहा रॉबर्टसन कॉलेज के छात्र चिदंबरन पिल्लई तथा उसके साथियों ने यहां क्रांतिकारी दल का गठन किया पीले इतिहास प्रसिद्ध कामागाटामारू कांड से संबंधित थे सन 1916 एवं सन 1917 में लोकमान्य तिलक जबलपुर आए थे राष्ट्रपति राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी 1921 में जबलपुर आगमन हुआ जबलपुर के नागरिकों ने स्वराज्य निधि कोष के लिए ₹20000 की राशि भेंट की थी झंडा सत्याग्रह का आरंभ जबलपुर से ही हुआ था यूरोपीय कमिश्नर द्वारा तिरंगे को पैरों से कुछ ले जाने के परिणाम स्वरुप सिरोही रोसपूर्व आंदोलन प्रारंभ हुआ इसके विरोध में जुलूस निकाला गया उसके उसके नेताओं में पंडित सुंदरलाल श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान इत्यादि थे नमक सत्याग्रह के समय सेठ गोविंद दास व पंडित द्वारिका प्रसाद ने जबलपुर में नमक का अंधा कानून तोड़ा सन 1942 के आंदोलन में भी जबलपुर में हड़ताल रखी गई और जुलूस निकाले गए सन 1945 में जबलपुर में स्थित भारतीय सिग्नल कोर के जवानों ने मुंबई की रॉयल इंडियन नेवी के विद्रोह की सहानुभूति के पक्ष में हड़ताल की और अपनी वेयर के छोड़कर वहां जुलूस निकाला

इंदौर-
 राजनीतिक चेतना का नया दौर इंदौर में बीसवीं शताब्दी के आरंभ में हुआ सन उन्नीस सौ सात में ज्ञान प्रसाद मंडल स्थापित किया गया जिसमें राष्ट्रीय विचारों के प्रचार का काम प्रारंभ किया सन् 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन गांधी जी की अध्यक्षता में इंदौर में हुआ था गांधी जी की यात्रा से इंदौर में राष्ट्रीय विचारों का बड़ा बल मिला कांग्रेस की शाखा की स्थापना इंदौर में सन 1920 में हुई इंदौर में स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल का खूब प्रचार हुआ कन्हैयालाल खादीवाला ने इसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

सन 1942 के आंदोलन में भी इंदौर की जनता ने पूरे जोश के साथ भाग लिया बड़ी संख्या में सवार व सार्वजनिक सभा में प्रजामंडल मजदूर संघ कांग्रेश तथा महिलाओं संगठनों के देशभक्त स्वतंत्रा सेनानी जेल में बंद रहे मई 1946 में प्रज्ञा मंडल ने इंदौर के राजाओं को 1 वर्ष की अवधि में उतरा उत्तरदाई शासन कायम करने का अल्टीमेट दिया जनता ने उग्र संघर्ष के सितंबर 1947 में इंदौर में उत्तरदाई शासन कायम  हुआ इंदौर में सार्वजनिक सभा की स्थापना में त्रिंबक दामोदर पुस्तकें का प्रमुख योगदान रहा

भोपाल-                                                                                                                                                        मोहम्मद बरकतुल्लाह भोपाल ने विदेशों में रहकर सतनता के लिए निरंतर संघर्ष किया काबुल में स्थापित की      गई भारत की अंतरिम सरकार 1915 में उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया सन 1934 में भोपाल में राजनीतिक गतिविधियां आरंभ हुई इसी वर्ष शाकिर अली खान ने सुबह वतन उर्दू साप्ताहिक और भोपाल राज्य की हिंदू महासभा ने प्रजा पुकार हिंदी सप्ताहिक निकाली 1938 में भोपाल के हिंदू और मुसलमान नेताओं ने मिलकर प्रजामंडल की स्थापना की सन 1939 में गांधी जी भोपाल आए थे सन् 1942 में प्रजामंडल बहुत शक्तिशाली हो गया सन् 1946 में प्रजामंडल एवं भोपाल नवाब की भी समझौता हो गया सन 1940 में ही भोपाल नगर में विलीनीकरण के समर्थन में जोर-शोर से आंदोलन प्रारंभ हुआ मास्टर लाल सिंह डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा सूरज मल जैन श्रीवास्तव आदि की गिरफ्तारियां हुई मिलाओ भी सैकड़ों की संख्या में मैदान में आई शासन ने भारी यातनाएं दी बरेली सीहोर उदयपुरा आदि तहसीलों में आंदोलन आग की तरह फैल गया उदयपुरा तहसील में बोरास घाट में लोमहर्षक गोली कांड हुआ जिसमें राष्ट्रीय तिरंगा हाथ में थाम बीर  नवयुवक छोटेलाल धन सिंह मंगल सिंह तथा विशाल सिंह एक के बाद एक शहीद हो गए इस घटना में तहलका मच गया सरदार पटेल ने वीपी मैनन को भोपाल भेजा मंत्रिमंडल भंग कर दिया के अधिकारियों को समूह की रिहाई हो गई ना बाप से 4 माह तक वार्ता चलने के 1949 को भोपाल रियासत केंद्र में विलीन हुई

विंध्यक्षेत्र-
 क्षेत्र में रीवा राज्य राष्ट्रीय आंदोलन में सबसे आगे रहा इलाहाबाद के निकट होने के कारण या आंदोलन की लार शीघ्रता से पहुंची 1920 के कांग्रेश के नागपुर अधिवेशन के पश्चात बघेल बघेल खंड में कांग्रेस के गठन का कार्य हुआ सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय 1931 रीवा के राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं पर अत्याचार की गरीबों के मुख्य कार्यकर्ता थे पंडित शंभूनाथ शुक्ला और कमान अवधेश प्रताप सिंह सन 1983 में राज्य प्रजामंडल का गठन में कार्यालय की स्थापना की गई राजा से उत्तरदाई शासन की मांग की गई है इसमें और भारत की रियासतों ने केंद्र सरकार में विलीन होने के संकल्प पत्र पर हस्ताक्षर किए

ग्वालियर-
 ग्वालियर रियासत भिंड से मंदसौर तक फैली हुई थी यहां भी राष्ट्रीय आंदोलन की आग फैल गई सन उन्नीस सौ आठ में वार में स्वदेशी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया क्रांतिकारियों का तो ग्वालियर गढ़ था गेंदालाल दीक्षित और चंद्रशेखर आजाद अनेक बार ग्वालियर के विभिन्न क्षेत्रों में छुपे थे सन 1930 में ग्वालियर में विदेशी स्वास्थ्य आविष्कार संस्था बनाई के विदेशों से हथियार प्राप्त कर क्रांतिकारियों तक पहुंचाने के संबंध में सन 1932 में ग्वालियर गोवा षड्यंत्र कांड हुआ इस संबंध में जिन लोगों को दंडित किया गया उनमें बालकृष्ण शर्मा गिरधारी लाल रामचंद्र सरवटे स्टीफन जो सिर्फ मुक्त 13237 में राजनीतिक कारणों के लिए ग्वालियर राज्य सार्वजनिक सभा ने कार्य प्रारंभ किया इसने राजा से उत्तरदाई शासन भारत छोड़ो आंदोलन का सार्वजनिक सभा ने समर्थन किया तथा विशाल और हड़ताल की गई ग्वालियर का केंद्र बन गया उपरोक्त स्थानों में राष्ट्रीय आंदोलन हुआ था मंदसौर,भानपुरा, गढ़ाकोटा,डिंडोरी, छिंदवाड़ा ,घोड़ाडोंगरी ,सागर ,विदिशा कुरवाई इत्यादि

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1 Comments

  1. उस वक़्त ग्वालियर क्रांतिकारियों की गतिविधियों का महत्वपूर्ण केन्द्र था। देश भर से क्रांतिकारियों का यहां आना और जाना होता था। यहां बनने वाले हथियार और बम विभिन्न क्षेत्रों में भेजे जाते थे। प्रसिद्ध काकोरी टे्रन डकैती में प्रयुक्त होने के लिए बम ग्वालियर से गए थे। महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, भगवानदास माहौर, भाई परमानंद, अरुण आसफ अली, गेंदालाल दीक्षित, जयप्रकाश नारायण, मोहनलाल गौतम का ग्वालियर आना-जाना था।

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