भारत में भोजन की बर्बादी एक जटिल समस्या

भारत में  भोजन की बर्बादी एक जटिल समस्या
                                                                                                                                                                        खाद्य उत्पादन में भारत विश्व के शीर्ष 5 देशों में है, इस मामले में हम हर साल अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़ देते हैं और इसी को बताते हुए कृषि विकास का प्रचार भी कर रहे हैंऐसे दावों के बावजूद अगर किसान आत्महत्या करता  रहा है तो देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा घटता ही जा रहा है



    देश का भूख सूचकांक और कुपोषण के आंकड़े भयानक तस्वीर पेश कर रहे हो तो कृषि के हालात की जांच पड़ताल जरूरी होनी चाहिए हरित क्रांति के बाद भारत खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर घोषित हो गया था लेकिन यह भी हैरत की बात है कि कई दशक पहले खाद्य आत्मनिर्भरता पा लेने के बावजूद भूख के वैश्विक सूचकांक में हम अपनी स्थिति नहीं सुधार पाए वैश्विक भूख सूचकांक ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 1 साल पहले की स्थिति के मुकाबले हमारी हालत तीन पायदान और नीचे चली गई वर्ष 2017 में भारत 100वें में पायदान पर था और 2018 में 103वें  नंबर पर आ गया है इस मामले में एक सौ 19 देशों में हमारी हालत सबसे पीछे के 17 देशों में दिखाई जा रही है

28 करोड़ टन अनाज उगाने वाले देश में अगर करीब 19 करोड लोगों को पर्याप्त भोजन ना मिल पाता हो तो यह जाना ही पड़ेगा कि क्या समस्या है? किस तरह की समस्याएं के आकार का अंदाजा लगाएं तो भारत में जितने लोग को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता उनकी तादाद फ्रांस, इटली, जर्मनी जैसे देशों की कुल आबादी से दुगनी बढ़ती है जाहिर है कि यह समस्या कम उत्पादन नहीं बल्कि पर्याप्त भंडारण व्यवस्था की कमी से जूझ जुड़ी हुई है इसे दूर करना होगा 28 करोड़  टन अनाज उगाने वाले देश में अगर करीब 19 करोड़ लोगों को पर्याप्त भोजन ना मिल पाता हो तो यह समस्या है कि इस तरह की यह आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ )  की "द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2018" रिपोर्ट में दिया गया है समस्या के आकार का अंदाजा लगाएं तो भारत में जितने लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता उनकी तादाद फ्रांस इटली जर्मनी जैसे देशों की कुल आबादी से दुगनी बैठती है खासतौर पर यह समस्या और ज्यादा जटिल तब बन जाती तब हम अपनी मांग या जरूरत है उसे ज्यादा पैदा करने का दावा भी कर रहे हो इन समस्या इस समस्या के कई कारण बताए जा सकते हैं लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि हमारी खाद्य भंडारण व्यवस्था निर्धारित मानकों से बहुत निचले स्तर की है भारत में मुख्य फसलों की बात करें तो भारतीय कृषि हमेशा से गेहूं और चावल पर आधारित रही है इसके अलावा दाल,गन्ना और धान आदि की भारतीय कृषि का बड़ा हिस्सा है लेकिन हमारे कृषि कृषि उत्पाद में आज भी गेहूं और चावल की चावल ही प्रमुखता से उठाया जा रहा है इस बार गेहूं की पैदावार 10 करोड से ज्यादा होगी सरकार की तरफ से कहा भी गया है कि देश में अनाज की कमी नहीं है लेकिन अब चिंता सरकारी खरीद बढ़ाने के बाद उसके भंडारण की है इस मामले में कुछ आंकड़े पर नजर डालना जरूरी है इस  साल सरकार 3 करोड़ गेहूं की खरीद की योजना बना रही है इस तरह चावल के लिए 35000000 खरीद बनाया गया था जिसमें से 35000000 सरकार की तरफ से इस साल खरीदा जा चुका है इस आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दो मुख्य फसलों के कुल उत्पादन का कितना हिस्सा सरकार सरकार खरीद पा रही है एक तिहाई अनाज बर्बाद चला जाता है तो इससे अंदाजा लग जाता है कि कितना अनाज जरूरतमंद तबके तक पहुंच पाएगा और कितना गोदाम है और ढुलाई के समय बर्बाद हो जाएगा जाहिर है कि यह समस्या कम उत्पादन दूध उत्पादन नहीं बल्कि पर्याप्त भंडारण व्यवस्था की कमी से जुड़ी है भारत में खाद भंडारण का काम सरकारी संस्था फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया दूसरी सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर करती हैं यह काम राशन की दुकानों यानी सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस के जरिए गरीबों तक पहुंचाने के लिए किया जाता है लेकिन आज तक हम अपनी भंडारण क्षमता को इतना दुरस्त नहीं कर पाए कि देश में अनाज की बर्बादी रुक जाए मसलन सिर्फ अनाज के भंडार का ही नहीं है अनाज के अलावा जल्दी खराब होने वाले दूसरे खाद उत्पादन जैसे फल और सब्जियों को सुरक्षित भंडारण की उससे उससे भी ज्यादा जरूरत पड़ती है
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लेकिन देश में फलों और सब्जियों के लिए शीत  ग्रहों (कोल्ड स्टोरेज)की सुविधा नाकाफी है इंस्टीट्यूशन आफ मैकेनिकल इंजिनियर्स के एक शोध सर्वेक्षण के मुताबिक इस  समय भारत में करीब 63 सो कोल्ड स्टोरेज सुविधाएं हैं इनकी भंडारण क्षमता करीब तीन करोड़ टन  है लेकिन इन कोल्ड क्षमता करीब 3 करोड टन  है लेकिन इन कोल्ड स्टोरेज में से 75 से 80 फीसद गोदाम सिर्फ आलू की फसल रखने के लिए ही अनुकूल है लंबे समय तक टिकने वाली मुख्य फसलें यानी गेहूं और चावल के भंडारण की स्थिति खास अच्छी नहीं है  इस समय भारत में सिर्फ आठ करोड़ 43 लाख   की व्यवस्था है इससे सरकारी भंडार तीन करोड़ 62 लाख  टन की क्षमता के ही हैं दूसरी एजेंसियों और गैर-सरकारी भंडारों की कुल क्षमता 4 करोड़ 80 लाख है हालांकि गैस भंडारों को सरकार एक सीमित समय के लिए किराए पर ले लेती है इतना ही नहीं साढ़े 8 करोड़   टन की क्षमता भंडारण में एक और नुक्ता है इस गोदाम में भी बंद या छत वाले गोदामों की क्षमता सिर्फ 7 करोड है बाकी डेढ़ टन अनाज खुले आसमान के नीचे बोरो  के कट्टे लगाकर और उन्हें तिरपाल  से रखने की मजबूरी है

          भंडारण के काम का जिमा के उत्पादों को यानि किसान का है लेकिन अगर किसान लोग भी जानते हैं कि मुश्किल हालात में आते जा रहे  किसान कर्ज लेकर किसानी कर पा रहे हैं उनकी माली हालत इतनी खराब है कि फसल तैयार होते ही भी उसे बेचना चाहते हैं ताकि पैसा अगली फसल की तैयारी करें हर किसान चाहता है कि उसका सारा उत्पाद ही न्यूनतम किसान की उपज का थोड़ी हिस्सा ही सरकारी खरीद ली जाती है बाकी बड़ा हिस्सा खुले बाजार में सस्ते में बेचने की उसकी मजबूरी होती है भंडारण में प्राथमिकता पर होना चाहिए बीते साल यानी 2018 में भंडार एफसीआई के जरिए सरकारी खर्च 2731 करोड रुपए बैठा था लेकिन भंडार के मामले में अपनी हालत देखते हुए इस इस काम पर खर्च बढ़ाने की सख्त जरूरत दिख रही है कम से कम मुख्य फसलों की ज्यादा से ज्यादा खरीद का इंतजार ना सिर्फ किसानों को राहत देगा बल्कि वो के सूचकांक को ठीक करने वाला आज की कमी से जूझ रहे तबके तक राहत  पहुंचने  जाने के लिए भी जरूरी है

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