राष्ट्रीय आंदोलन में मध्यप्रदेश का योगदान-raashtreey aandolan mein madhyapradesh ka yogadaan

राष्ट्रीय आंदोलन में मध्यप्रदेश का योगदान 


राष्ट्रीय आंदोलन में मध्यप्रदेश का योगदान मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय आंदोलन की सभी संघर्षशील आंदोलन रही यहां के मूल निवासियों ने आजादी के महासंग्राम में बलिदान दिया  मध्य प्रदेश की रियासतों की जनता ने और कई राज परिवारों ने राष्ट्रीय आंदोलन के लिए आंदोलन के महत्वपूर्ण योगदान दिया यहां के रजवाड़ों की प्रजा को दोहरी गुलामी को उतार फेकने  के लिए काफी लड़ना  पड़ा है यहां के किसानों ने लड़ाई लड़ी असहयोग आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन,नमक सत्याग्रह जंगल सत्याग्रह और 1942 की क्रांति में मध्य प्रदेश की महत्वपूर्ण। भागीदारी रही चंद्रशेखर आजाद की क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र ओरछा  था तो मगनलाल बागड़ी की हिंदुस्तानी लाल सेना ने इसी धरती पर सशस्त्र संग्राम छेड़ा था।

                   
असहयोग आंदोलन असहयोग आंदोलन में मध्यप्रदेश की महत्वपूर्ण योगदान रहा है इसने में भोपाल,ग्वालियर इंदौर जैसी बड़ी-बड़ी राजा रियासतों के अतिरिक्त छोटी रियासतों में भी असहयोग आंदोलन के समय बड़ा उत्साह देखने को मिला इस अवसर पर गांधी जी ने छिंदवाड़ा जबलपुर खंडवा सिवनी का दौरा किया असहयोग आंदोलन में मध्य प्रदेश की जनता ने शराबबंद,तिलक स्वराज फंड विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार सरकारी शिक्षण संस्थाओं का त्याग कर राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान की स्थापना, हथकरघा उद्योग की स्थापना जैसे महत्वपूर्ण  अपना योगदान दिया

झंडा सत्याग्रह 1923 राष्ट्रीय ध्वज किसी राष्ट्र की समृद्धि सम्मान और  गौरव का प्रतीक होता है भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में चरखा युक्त तिरंगे झंडे को यह दर्जा प्राप्त रहा है 1923 में इस ध्वज की आन बान शान को लेकर एक ऐसा प्रसंग उपस्थित हो गया जिससे में ना केवल राष्ट्रीय ध्वज के प्रति संपूर्ण राष्ट्र की श्रद्धा और निष्ठा की मुखर अभिव्यक्ति हुई बल्कि अंग्रेजी हुकूमत तक को उसे मानने करने पर विवश होना पड़ा इतिहास के इस स्वर्णिम अध्याय को झंडा सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है

दूरियां जंगल सत्याग्रह 


1930 में जब गांधी जी ने दांडी मार्च कर नमक सत्याग्रह किया तब सिवनी के कांग्रेस कार्यकर्ता दुर्गा शंकर मेहता के नेतृत्व में जंगल सत्याग्रह चलाया सिवनी से 9-10 मिल दूर सरकारी जंगल चंदन बगीचों में घास काटकर या सत्याग्रह किया जा रहा था इसी सिलसिले में 9 अक्टूबर 1930 को सिवनी जिले के ग्राम दुरिया जो कि सिवनी से 28 मील दूर स्थित है संग्राम की तारीख सुनिश्चित हुई स्वयंसेवक हाथ काटकर सत्याग्रह करने गए पुलिस दरोगा और रेंजर ने सत्याग्रह क्यों का समर्थन करने आए जन जन समुदाय के साथ बहुत अभद्र व्यवहार किया जिससे जनता उत्तेजित होती सिवनी के डिप्टी कमिश्नर के इस हुकमा पर" टीच देम ए लेसन" पुलिस ने गोली चला दी घटनास्थल पर ही 3 महिलाएं  गुड्डो दाई, रैना बाई बेमाबाई और एक पुरुष बिरजू गोड शाहिद हो गए  चारों आदिवासी थे

घोड़ा-डोंगरी का जंगल सत्याग्रह 

आदिवासी बहुल बैतूल जिला स्वतंत्र आंदोलन का प्रमुख केंद्र और यहां के निवासियों ने पराधीनता के विरूद्ध संघर्ष के 1930 के जंगल सत्याग्रह के समय बैतूल के आदिवासी समुदाय ने विद्रोह की मशाल थाम ली थी शाहपुर के समीप बंजारी ढाल का गंजन सिंह कोरकू विद्रोही आदिवासियों का नेता था

चरण पादुका गोलीकांड


  चरण पादुका गोलीकांड 14 जनवरी 1930 को मकर संक्रांति के दिन छतरपुर रियासत में उर्मिल नदी के किनारे चरण पादुका में स्वतंत्रता सेनानियों की एक विशाल सभा चल रही थी काफी संख्या में लोग इकट्ठे हुए थे नौगांव स्थित अंग्रेज पोलिटिकल एजेंट के ऊपर बिना किसी चेतावनी के अंधाधुंध गोलियां चला दी गई जिसमें अनेक  लोग मारे गए मध्यप्रदेश का जलियांवाला बाग जाने वाले इस लोमहर्षक कांड  में अंग्रेज सरकार ने 6 स्वतंत्रता सेनानी सेठ सुंदरलाल ,  धरमदास खिरवा,चिरकू,हलके कुर्मी,रामलाल कुर्मी और  रघुराज सिंह का पुलिस गोली से शहीद हो गए


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